फिर कही दूर से एक आवाज आई,
मैने कुछ हिम्मत फिर दिखाई,
फिर कुछ दूर मैने कदम बढ़ाया,
एक कांटा चुभ कर मेरे पांव में आया,
मैने फिर रब से गुहार लगाई,
जितनी हे मुझे होसलो की ये लड़ाई,
खुद को मैने फिर से समेटा,
पर कुछ ही दुरी पर खड़ी थी एक और परीक्षा,
मझदार की लहरे और अंधी ने मेरी नय्या डुबाई,
मै फिर थोडा सकुचाई फिर घबराई,
पर फिर उठकर जब मैने देखा, तेरी रौशनी मुझसे कुछ कहती नजर आई,
किस्मत फिर मुझ पर मंद मंद मुस्कुराई,
गुरु की महिमा तब मुझे समझ आई,
अपने होसलो और एक रौशनी के सहारे,
जीत ली मैने जीवन की लड़ाई,
गुरु तेरी महिमा तूने मुझे सदा राह दिखाई।।
गुरु तेरी महिमा तूने मुझे सदा राह दिखाई।।
अभिमान और स्वाभिमान
अभिमान की नहीं स्वाभिमान की है ये लड़ाई,
एक स्त्री के सम्मान की ख़ातिर जब कृष्ण ने थी महाभारत रचाई,
एक स्त्री की लाज बचाने, दुर्गा काली रूप लेकर थी आई,
जब बात देश की आई,
लक्ष्मी बाई ने थी तलवार उठाई,
पर बात जब मेरी इज्जत पर आई, क्यों तुमने हिम्मत न दिखाई,
अभिमान की नहीं स्वाभिमान की है ये लड़ाई,
जब बाँसुरी प्यार की बजी ,
मै मीरा तो कभी राधा बनी,
जब गाया तुमने गीत प्रेम का,
मैने माँ यशोदा बन अपना फ़र्ज निभाया रीत का,
बात जब सीता की लाज पर आई,
अग्नि ने भी अपनी पहचान भुलाई, अग्नि भी माँ सीता को छु नाही पाई,
पर बात जब मेरे सम्मान पर आई,
कहाँ खो गयी जग की भलाई,क्यों सच्चाई तुम्हें नजर नहीं आई,
अभिमान की नहीं स्वाभिमान की है ये लड़ाई।।
अभिमान की नहीं स्वाभिमान की है ये लड़ाई।।